वो बचपन के दिन ही अच्छे थे।

आगे बढ़ने की दौड़ में सुकून के पल अब कहां?
मां की गोद में सर रख पाऊं वो फुर्सत अब कहां?

वो बचपन के दिन ही अच्छे थे,
भाई बहन के आपस के झगड़े ही सच्चे थे।

वो चॉकलेट के लिए लड़ना,
बात बात पर झगड़ना,
पर प्यार भी उतना करना।

अक्ल के मामले में भले ही कच्चे थे,
पर रिश्तो में हम पक्के थे।

ये सब होता था जब हम बच्चे थे,
वो बचपन के दिन ही अच्छे थे।

वक्त कितना तेजी से बीत जाता है।
रेत – सा मुट्ठी से फिसल जाता है।

काश थम जाए वो पल,
जब अपनों के संग रहूं।

भूलकर दुनियादारी की बातें,
बस उस पल को जियूं।

सबके साथ मिलकर,
घर में हो – हल्ला करूं,
फ्रिज में छुपा कर रखी हुई मिठाई,
चोरी से खा लूं।

क्योंकि

ये सब होता था जब हम बच्चे थे,
वो बचपन के दिन ही अच्छे थे।

– © pÑp

( P.S. – Photography by Rajat Kumar Gautam. )

6 Comments

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